जब हम दूसरों के पिछवाड़े लठ लिए खड़े रहते हैं तो भूल ही जाते हैं कि हमारा भी पिछवाड़ा है और ऐसे में कोई हमारे पिछवाड़े भी लठधारी खड़ा होनें की बाट जोह रहा है। जब भी उसे मौकां लगेगा वह भी वही सब करेगा जिस का अनुभव हमनें कभी उसे कराया था । जब ऐसा अवसर आता है तब हम उपदेशक बन कर उस तथाकथित अज्ञानी को सीख देनें लग जाते हैं। कई बार तो सीख की जगह हम सयापा करने लगते हैं। लेकिन कितना अच्छा होता यदि हम भी उसी तरह उस को पेश आते ,जैसा हम चाहते हैं कि कोई हमारे साथ पेश आए। लेकिन नही हम अपनें लिए कुछ और ,और दूसरों के लिए कुछ और होनें का मजा लूटना चाहते हैं। कई बार ऐसा होता है कि सामनें वाला सच भी बोल रहा होता है तो भी हमारा दंभ हमें उसे स्वीकार करनें को तैयार नही होता और हम अपनी फितरत के कारण,उस के पिछवाड़े काटनें से बाज नही आते । अरें भाया! कहीं आप बुरा ना मान जाना। यह सब तो मैं अपनें को समझानें के लिए कह रहा हूँ । लेकिन अगर आप का मन मानें तो आप अपनें को भी समझानें की कोशिश कर सकते हैं।
इस समय किसी का एक दोहा याद आ रहा है-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना मुझ-सा बुरा ना कोय॥