Saturday, July 14, 2007

भटका पथिक

1 टिप्पणियाँ
भट्का बहुत
कहीं पहुँचा नही
चलता रहा
सबसे कहा
किसी ने सुना नही
यहाँ हर कोई
पागल -सा घूमता है।
बस अपने आप को
चूमता-सा झूमता है
आखिर कौन इसे
अब समझाएं
सब आँखे मीटे हैं
गूँगें है यहाँ
कैसे कोई गाए
यही सोच कर आज
सब हैं घबराएं
अपने ही सताएं।

1 टिप्पणियाँ:

परमजीत सिहँ बाली says:
July 14, 2007 at 2:29:00 AM GMT+5:30

क्या बात है।बढिया है।

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