Monday, December 24, 2007

ना निगलते बनें ना उगलते

0 टिप्पणियाँ
अरे भाया! अभी कल ही की बात है...मैनें अपनी भड़ास निकाली थी।....लेकिन लगता है वह जान कर भी अंजान बन बैठें हैं...खेर उनकी मरजी।
अपन ने तो सच्ची बात कह दी। वह समझ भी गए होगें...लेकिन बोले क्या?....एक कहावत याद आ रही है"साँच को आँच नही" वाली लगता है उस पोस्ट- भड़ास का गोरख धंधा - को पढ़ कर कुछ कहते ना बना होगा।...मेरी सोच को भी गलत साबित कर दिया भडासीयों ने। वह तो "वेलकम" की बात करने लगे हैं...."पैसे वसूलने" की बात कर रहे हैं"हीरालाल....." की बात कर रहे हैं.कि ये कौन है......सब को बता रहे हैं कि "सोनिया को लगी मिर्ची " दिखाई दे रही है...लेकिन उन को भी कू्छ लगा यह नही बता रहे...???

0 टिप्पणियाँ:

Post a Comment