प्रिय भड़ासीयों, मेरी बात का बुरा ना मानें। आप ने मेरी मानसिकता पर सवाल उठाया है...लेकिन शायद आप यह भूल गए कि आप तो कहते थे ...नही नही कहते हैं.... कि "अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हलका हो जाएगा".............लेकिन अब लगनें लगा है कि अपना मन तो हल्का हो जाता है लेकिन दूसरे का भारी हो जाता है......शायद आप का अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा होगा। यह मै इस लिए कह रहा हूँ क्यूँ कि मुझे यह आप की पोस्ट पढ कर लगनें लगा है। हम तो आप से ही भड़ास निकालनी सीखे थे....अब आप को ही समझ नही आ रहा कि हँसे की रोए?
बताइए इस बात का कोई क्या जवाब दे?
5 टिप्पणियाँ:
December 27, 2007 at 5:01:00 PM GMT+5:30
anjali123
जनाब आप तो खुद इतने डरे हुए हैं कि खुद नहीं जानते हैं कि आप हैं कौन
December 27, 2007 at 5:15:00 PM GMT+5:30
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http://bhadas.blogspot.com/2007/12/blog-post_3031.html
December 27, 2007 at 6:34:00 PM GMT+5:30
मैं करूँ तो लिला तू करे तो पाप... और क्या?
December 29, 2007 at 11:57:00 AM GMT+5:30
December 31, 2007 at 1:59:00 PM GMT+5:30
मित्र आपने भड़ास के लिये जो भड़ास निकाली है वह वास्तव में भड़ास न लगकर एक प्रकार जलन लगती है । हर चीज़ को व्यक्त करने का एक तरीका सलीका होता है । जिसकी आपमें नितांत कमी महसूस हो रही है । मित्र फि़र भी हम भड़ासी है हस चीज को हजम कर लेते है । लेकिन आपनी सोंच़ का दायरा कुछ बढा लेगें तो तो ठीक होगा / नये वर्ष की शुभकमनाओं सहित ।
शशिकान्त अवस्थी
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