Tuesday, May 8, 2007

जागो मनमोहन प्यारे जागो

6 टिप्पणियाँ
जब से कुर्सी पर विराजे हैं इन की नींद ही नही टूट रही। लेकिन जब सोनिया जी पुकारती हैं तो प्रधान मंत्री जी जरा-सी आँखों को खोलते है और उन का कहा कार्य कर के फिर नींद मे डूब जाते हैं।जब वह बोलनें को कहती हैं तो बोलते हैं, वह भी वही बोलते हैं जो वह बोलने को कहते हैं।यह सब देख कर आज अयोध्या के भरत जी की याद आ जाती है जिस तरह वह राम जी की पदुकाऒ को सिंहासन पर विराजित कर स्वयं नीचे बैठे रहते थे।लेकिन भरतजी में और इनमें जमीन आसमान का अन्तर है।हमारे मन मोहन प्यारे तो संन्तरी बन बैठे है यहाँ। उन को देख-देख कर मै अक्सर अपने बाल नोचने लगता हूँ।मुझे बहुत खींझ होती है कि इतना पढा-लिखा काबिल इंसान क्या किए जा रहा है।हम तो सोच रहे थे कि चलो देर से ही सही ,भारत को अब कोई नयी दिशा मिलेगी। एक तरफ काबिल प्रधान मंत्री और दूसरी और एक विग्यानिक राष्टीयपति देश को शिखर पर ले जाएंगे। लेकिन वाह रे मेरे देश का भाग्य ! सब सपनें टूट गए। आज जो देश मे हो रहा है, जो छोटी-छोटी चिंगारियाँ चटाके मार रही हैं, इन्हें ये देख कर भी नही दिखाई पड़ रही। एक बार पहले भी देश इस आग मे झुलस चुका है। जैसे पंजाब में पहले तो क्ट्टरपंथियों को हवा देते रहे और जब वह चिंगारी ज्वालामुखी बन गई तो इन्हे होश आया और बिना सोचे समझे जो कार्यवाही की गई ,उस की आग में देश की एक बहादुर कौम झुलस गई।जिस की तपिश अभी भी रह-रह कर महसूस होती है।
आज जो महाराष्ट मे हो रहा है वह एक शुरूआत है।सभी जानते है सब झगड़े भाषा से ही शुरू होते हैं और फिर धीरे-धीरे अपना स्वरूप बदलनें लगते हैं। कहीं ऎसा ना हो कि ये आग देश के अन्य भागो मे भी फैल जाए। आजादी के साठ साल बाद भी हम हिन्दी को राष्टीय भाषा नही बना सके। लोगो के मन से प्रांतवाद को ना निकाल सके। हम आज भी उत्तर भारत के, दक्षिण भारत के होकर रह गए हैं। हम पूरे भारत के कब होगें ? जब भारत का कही का भी रहने वाला नागरिक,बिना किसी संकोच के कही भी शान्ती से रह पाएगा ?
आज कश्मीर में जो राष्टीय विरोधी नारे लग रहे हैं, जो बयानबाजीयाँ चल रही हैं, क्या वह वर्तमान सरकार को सुनाई नही दे रही?
आज सिक्खों की पगडी को लेकर विदेशों मे जो विवाद उठ रहे हैं, उस समस्या से निजात दिलाना क्या भारत सरकार का फर्ज नही बनता ? क्या वह भारतीय नहीं हैं ? अपने देशवासियों की परेशानियों को दूर करना क्या भारत का फर्ज नही है ? ऎसा ना कर के क्या वह अलगाववादियों को प्रोत्साहन देने का काम नही कर रहे ? उन्हें भारतीय सिक्खों को बर्गलानें का मौका नहीं दे रहे ?
अरे! मन मोहन प्यारे अभी समय रहते ही जाग जाऒ ।वर्ना तब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत।

6 टिप्पणियाँ:

उन्मुक्त says:
May 9, 2007 at 8:58:00 AM GMT+5:30

हिन्दी चिट्ठा जगत में स्वागत है।

ePandit says:
May 10, 2007 at 1:27:00 AM GMT+5:30

स्वागत है ढंढोरची जी आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में।

नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर भी अवश्य जाइएगा।

Udan Tashtari says:
May 10, 2007 at 6:48:00 AM GMT+5:30

स्वागत है भाई हिन्दी चिट्ठाजगत में. अब चालू हो जाये लेखन. इंतजार है.

Navy says:
May 10, 2007 at 10:27:00 AM GMT+5:30

bahut badia hai...

Anonymous says:
June 9, 2007 at 5:42:00 PM GMT+5:30

bahut din ho gaye | ab koi naya lekh ho jaye?

saket
hindi main likhein, ab quillpad.in se

Anonymous says:
June 9, 2007 at 5:42:00 PM GMT+5:30

बहुत दिन हो गाये | अब कोई नया लेख हो जाए?

- saket

हिंदी मैं लिखें, अब quillpad.in से

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