Tuesday, July 17, 2007

एक खत

4 टिप्पणियाँ



बहुत दिन हुए


तुम्हारा खत आया था।


वही पुराना संदेशा


फिर से लाया था।


बार-बार वही बात


घर जल्दी लौटों।


मुन्ना है बीमार


तबीयत मेरी भी ढीली।


छुटकी आप की याद में हो रही है पीली।


भैस भी अब दूध कम देती है।


गौरी गाय फिर ब्याहने वाली है।


याद तुम्हें करती छोटी साली है।


अम्मा करती है तंग


ताने देती है।


भैया लेने आया था


नही जाने देती है।


बाकि सब है ठीक


नही चिन्ता करना।


कब तक आओगे


जरा जल्दी लिखना।


सब कुछ तो इस खत मे


लिख नही सकती


किसी की भी बात


पता नही क्यूँ नही फबती


समझ सकते हो बात तुम्हीं


ये मै जानूँ


जल्दी आओगे घर


क्या मै मानूँ?

(प्रेषक)

4 टिप्पणियाँ:

ऒशॊदीप says:
July 17, 2007 at 1:15:00 AM GMT+5:30

बहुत अच्छी कविता है।

अनूप शुक्ल says:
July 17, 2007 at 6:57:00 AM GMT+5:30

बहुत अच्छा लगा इसे बांचकर!

रवि रतलामी says:
July 17, 2007 at 11:08:00 AM GMT+5:30

मजेदार कविता है.

और उससे भी ज्यादा मजेदार आपका परिचय.

वैसे, एक जानकारी आपसे बांटना चाहता हूँ.

आपके जैसा परिचय मेरा भी है. और इसीलिए मैंने अपना ब्लॉग शुरू किया था. :)

Sanjeet Tripathi says:
July 17, 2007 at 6:29:00 PM GMT+5:30

बढ़िया रचना एक शानदार परिचय के साथ जो कि अपना सा लगता है!

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