Tuesday, July 24, 2007

कुछ मत कहो असीमा से

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उस काली सुरंग को
कोई नही जानता
जहाँ वह अकेली औरत भागती थी
पहले तो यह बता
तू अकेली घुसी काहे
जहाँ पर काम चल रहा हो

छेनी हथॊड़ॊ की आवाजे हो
ऐसी जगह
अगर सिर उठा कर चलेगी
तो सिर फूट जाएगा
क्या तुझे
अपने आप समझ नही आएगा?
अँगूठे से कुरेदने से
अगर मुहाने बनते
तो काम बहुत आसान हो जाता
खुदाई का
इस परेशान दुनिया मे
जहाँ हरिक शख्स परेशान है
वहाँ कौन
किसी दूसरे की कहानी
सुनने के लिए बैठा है
अब भी अगर
वह गुफा मे भाग रही है
और डरती भी नही है
कीच से सन कर भी
सुरंग मे घुसना चाहती है
अकेली
लथपथ होती हुए
बहुत नासमझ है
पहले स्नान कर लेती
जब कि मुहाने से
अवाज आती है
उस को गूँज भी सुनाई नही पड़ती?
और ढीठ बनी कहती है-
यही मेरा चेहरा है।
किस को सुनाई
तुमने अपनी कहानी
यहाँ तो हर शख्स
इक बहरा है।

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