Friday, September 7, 2007

ताली बजाने का मौका

9 टिप्पणियाँ
यह रचना उन को समर्पित है,जिन्होनें मुझे सोहार्द फैलाने ले लिए प्रेरित किया। उन की दी टिप्पणी आप
इस पोस्ट पर पढ़ सकते हैं।
रोती हुई जिन्दगी में हसँना भी चाहिए।
मेरी बात पर ना आप खार खाइए॥
कही बातों को दोहराना, सोहार्द नही है।
सोहार्द चाहते हैं तो, बात आगे बढ़ाइ॥
ब्लोग पर हैं एड जनाब सोहार्द कहाँ है।
चैनलों की तरज पर,टी आर पी बढाइए॥
चाहता नही किसी को,पत्थर से मारना।
ढंढोरची के ढोल पर जनाब ताली बजाई॥

9 टिप्पणियाँ:

Anonymous says:
September 7, 2007 at 8:01:00 PM GMT+5:30

बोल तो ठीक रहे हो कि सब टीआरपी का चक्कर है। लोग चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा अपने नाम को पहले पन्ने पर रखबा सकें।
मिठ्ठू के क्या काम होते हैं?
दूसरे की बात दोहराना
अपने मुंह मिंया मिठ्ठू बनना
जाने भी दो यारो

ढंढोरची says:
September 7, 2007 at 8:20:00 PM GMT+5:30

Rachna said...
woh kuch toh saarthak kar rahen haen , sohaard toh phela rahe haen
aaj kae is mahol mae aap sohaard phelane kae liyae kya kar rahen hae ? kabhie uska bhi didhora bajayae , hum bhi taali bajane kaa maok dae

यह है आप की टिप्पणी का जवाब!!!

Anonymous says:
September 7, 2007 at 8:25:00 PM GMT+5:30

good some creative thing came out

Anonymous says:
September 7, 2007 at 8:29:00 PM GMT+5:30

clap clap clap

Udan Tashtari says:
September 8, 2007 at 12:01:00 AM GMT+5:30

अरे वाह, जब रचना जी ही ताली बजा गईं तो हम काहे नहीं--तालियाँ.

Anonymous says:
September 8, 2007 at 12:41:00 AM GMT+5:30

वाह!इसे कहते हैं दुश्मनों के दाँत खट्टे करना!जब विरोधी भी मौन हो जाए...और उसे भी वाह...वाह कहना पड़े।

तरनजीत

Anonymous says:
September 8, 2007 at 8:16:00 AM GMT+5:30

clap roman mae likho toh

Anonymous says:
September 8, 2007 at 10:58:00 AM GMT+5:30

वाह!इसे कहते हैं दुश्मनों के दाँत खट्टे करना!जब विरोधी भी मौन हो जाए...और उसे भी वाह...वाह कहना पड़े।

@तरनजीत

SO YOU AGREE THAT YOU ARE WRITING TO MAKE ENEMIES BECAUSE IF YOU TREAT EVERY WHO WRITES A COMMENT AS AN ENEMY THEN YOU DONT UNDERSTAND THE DIFFERNCE BETWEEN SATIRE , APPRECIATION AND CREATIVITY .

परमजीत सिहँ बाली says:
September 8, 2007 at 12:44:00 PM GMT+5:30

तरनजीत जी,यहाँ पर सभी चिट्ठाकार एक-दूसरे के मित्र हैं...आप को दूश्मनी कहाँ नजर आ गई?आपसी संवाद को गलत नाम दे रहे हैं आप।

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