यह कैसी भड़ास है भड़ासानंद की?....कौन हैं सब ....यही सोच भड़ास को समझनें कि कोशिश की....जब समझ आई तो पता चला......यह सब गोरखधंधा है.....अरे! नही कहीं -कहीं लगनें लगा सिर्फ धंधा है।...........क्यों समझ नही आ रहा ना भाया! जरा ध्यान से देखे और फिर समझे। समझ आ जाएगा। इस सब के पीछे सब से बडे भड़ासिए का दिमाग क्या पका रहा है...........आओ अपनी -अपनी भड़ास निकालों.......पर भाया!.......कुछ फायदा तो हमें भी देते जाओ।..तुम अपनी भड़ास निकालनें का। यही सोच मैं भी भड़ास निकालने बैठ गया हूँ।..जानता हूँ अब मुझ पर बरसेगें......इन भड़ासीयों के जूते चपल। वो कहेगें तुझे काहे की जलन हो रही है तू भी यह धंधा शुरू कर लें ...तुझे कौन रोकता है?....अब वह कुछ ऐसी भाषा का इस्तमाल भी करेगें.....जो शायद मुझे घायल करने की कोशिश करे। लेकिन मैं तैयार हूँ....सब वार सहनें को.......।अमां यार सब चलता है यहाँ।........भड़ास ने एक सीख तो दी है मुझे....कि भैयीए! अपनी भड़ास निकाल लो...भड़ास निकालनें से अपना मन तो हलका हो जाता है...वो बात अलग है कि दूसरे के सिर पर लद जाता है।.....यहाँ दूसरे की कौन सोचे?......अपनी कह ले...दूजें की सह ले....संकोच किया तो संत बन रह लें।..........यही तो है भड़ास!....अरे!! क्या अब तक नही समझे?....८८ सदस्य हो गए हैं पूरे १०० होने चाहिए। सुना नही....न न पढ़ा नही क्या?...जो अपनी भड़ास निकालनें के लिए शामिल हैं या शामिल होना चाहते हैं उन्हें समझ आ रहा है क्या?.......लगता है कुछ को आ गया होगा......अगर नही आया....तो दिमाग पर जरा जोर डालों।.सब समझ आजाएगा.....आप तो सब समझते हो....अब तक तो समझ ही गए होगें भाया!...मेरा ईशारा किस ओर है....सब से बड़ा भड़ासियां तो समझ ही गया होगा....क्यूँ ठीक कह रहा हूँ ना?......जितनी बार किलकाओगें ...उतने दाम दिलागें।....ही ...ही....ही......मैनें तो अपनी भड़ास निकाल ली.....अब तुम्हारी बारी है चलों हो जाओं शुरू.....अब तो जय रामजी की बोलना पड़ेगा......हम तो अपनी भड़ास निकाल कर चलें.....
Saturday, December 22, 2007
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3 टिप्पणियाँ:
December 27, 2007 at 2:49:00 PM GMT+5:30
बड़े घटिया इंसान लग रहें आप जनाब
March 5, 2008 at 5:27:00 PM GMT+5:30
kuch jalne ki boo aa rahi hai ha ha ha
November 23, 2015 at 4:33:00 PM GMT+5:30
शुभम लाभ Seetamni. blogspot. in
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