यदि किसी को मेरी यह रचना आहत करे तो माफी चाहूँगा....................
बना बेवकूफ ढूंढ रहा था मिल जाए बस कुछ हाला,
बच्चें-बीबी भूखे मर जाएं, मुझ को तो चाहिए प्याला,
मुझे ठहरनें को यारों, परेशान नही होना पड़ता,
मिले ना घर,मिले ना दुकान,मिल जाता है गंदा नाला।
अम्मां निसि -दिन गाली देती,खफा रहे मुझ से खाला,
लड़-भिड़ निति घर से आता,पीट बीबी को, पीनेंवाला,
भाया!कैसे तुलना हो,खड़े रहना जिसको मुश्किल हो,
बेसुध-सा कहीं पड़ा जमीं पर,देखे सपना जन्नत वाला।
बदबू मुहँ में,गाली काडे,आनें-जानें वालो को लाला,
सरे बजार निति पिटता है,बेसुध ये पिटनेवाला,
जूते खा कर भी मस्ती में,झूम रहा पीनें वाला,
पता नही कितनें घरों को,बर्बाद करे है मधुशाला।
1 टिप्पणियाँ:
January 9, 2008 at 8:20:00 PM GMT+5:30
बहुत खूब वाह
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