Monday, February 25, 2008
"दो बाँटन के बीच में साबुत बचा ना कोय"
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Monday, February 25, 2008
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आज एक लेख (एकता कुत्तों की और इंसान के नाते मेरी जलन!)पढ कर एक पुरानी घटना याद आ गई।एक बार हमारे मोहल्ले में एक शराबी परिवार में बाप बेटों की आपस में किसी बात को लेकर बहस हो गई।बहस बढते-बढते हाथापाई की नौबत आ गई।बाप-बेटें दोनों ही शराब पिए हुए थे। वे लड़ते-लड़्ते गली में आ गए।जोर-जोर से गालीयों के साथ-साथ जूतम जूता भी शुरू हो गई।ऐसे मौको पर जैसा देखनें में आता है कि सभी मोहल्ले वालें तमाशबीन बन कर बाप-बेटों का संग्राम देख आनंदित हो रहे थे।दोनों बेटे मिल कर बाप की धुनाई करने में लगे हुए थे और बाप गालीयों की बौछार किए जा रहा था । मौका मिलते ही वह भी अपने हाथ बेटों पर साफ कर लेता था।मोहल्ले वाले आपस में शर्त लगा रहे थे कि बाप ,बेटों को पीट देगा और कुछ कह रहे थे कि नही, बेटों के हाथों आज बाप खूब पिटेगा।यह सब काफी देर तक देखते-देखते पता नही अचानक क्या हुआ कि मुझे कब और कैसे इंसानियत के कीड़े ने काट लिया। हमनें सोचा- दोनों बाप-बेटें शराब के नशे के कारण अपनें होश में नही है। इन्हें छुड़ाना चाहिए।बस यही सोच कर की हमारा यह काम हमें मोहल्ले में हीरो बना देगा,हम भी उन के बीच कूद गए और बीच -बचाव करनें की कॊशिश करनें लगे।हमनें बाप को रोकने की कोशिश की, उसे समझदारी करनें का वास्ता दिया लेकिन इसी बीच बेटों ने फिर जूते चला दिए और उन के जूते हमारी पीठ पर पड़े।अब हम बेटों की तरफ मुखातिब हुए और उन्हें बाप की इज्जत करने की नसीहत देनें लगे लेकिन इसी बीच बाप ने मौका पा कर अपना जूता चला दिया और वह बेटों की जगह हमारी पीठ पर सटाक! की आवाज करता हुआ पड़ा। हम उन्हें लडा़ई बन्द करनें की नसीहत देते रहे और वो बाप-बेटें अपनें- अपनें जूते एक-दूसरे को मारनें की कोशिश में हमारी पीठ पर ठोंकते रहे। काफी देर इसी तरह पिटनें के बाद हमारी हिम्मत ने भी जवाब दे दिया। हम गुस्से से भिन्भिनाते गालीयां निकालते उन के बीच से हट गए।उन्हें छुड़ाने के चक्कर मे हम खूब पिट लिए थे और उन के बीच पिटते रहनें के कारण,मोहल्ले वालें हम पर भी हँसनें लगे थे।हम तो हीरों बनने चले थे लेकिन मसखरें बन कर रह गए। उस दिन के बाद हमनें तौबा कर ली कि कभी किसी की लड़ाई के बीच-बचाव करनें के चक्कर में नही पड़ेगें।उस समय रह-रह कर हमें यह पंक्तियाँ याद आ रही थी-"दो बाँटन के बीच में साबुत बचा ना कोय"
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