जागो मनमोहन प्यारे जागो।
सोनिया की गोद से बाहर निकलो, देशको जरा सम्भालो॥
पद का मोह डुबाए मनमोहना,अपने होश सम्भालो।
देश का बटाँधार हो रहा,अब तो नीदं से जागो॥
बढी महँगाई रोती जनता,चहौं दिस हा हा कारो।
कान मे रूई डाल बैठे क्यूँ भाया, कैसे हो सरदारो॥
शर्म से सिर झुक-झुक जाएं उनका,किसने जाए पुकारो ।
कहत ढंढोरची सुन इज्जत रख सिख की,बन के शेर दहाड़ो ॥
7 टिप्पणियाँ:
August 21, 2007 at 3:58:00 PM GMT+5:30
पढ कर मजा आ गया । सही लिखा है आपने।
August 26, 2007 at 2:08:00 PM GMT+5:30
ऐसा सही कहा है जिसे सिर्फ़ हिम्मत वाले ही सराहेगें .
August 26, 2007 at 6:44:00 PM GMT+5:30
बहुत अच्छा लिखा है
अब देखना कुछ चंगुओ मंगुओ को मिर्च लगेगी और वो लोग तुम्हारे ऊपर भी पूं पूं करेंगे जैसे सुरेश चिपलूनकर पर करते रहे है।
August 26, 2007 at 8:52:00 PM GMT+5:30
जय हिन्द, तुसी ते कमाल कर दिता,आज भी सच बोलने की,लिख्ने की हिम्मत हे.आप ने कुछ गलत नही लिखा,सलाम आप को,
August 27, 2007 at 1:08:00 AM GMT+5:30
अरे! ढंढोरची मिया!लिखा तो सच है,लेकिन बचके रहना।सच को ना पचा सकने वाले जरूर हो हल्ला मचाएगें।
August 27, 2007 at 1:18:00 AM GMT+5:30
वाह! ढंढोरची महाराज...बहुत बड़ी बात लिख दी आपने...आप सहि कह रहे हो अगर मनमोहन सिहँ जी,बिना दबाव के राज चलाए तो देश को बहुत फायदा हो सकता है...सही लिखा..."बन कर शेर दहाड़ों।"
August 27, 2007 at 9:59:00 AM GMT+5:30
जियो मेरे लाल.तुसी नज़र न लग जाये पाजी.
सरदार का मतलब सिंह से होता है जी.
हैदराबाद में लाशों के रूप में तोहफा दिया है.कमज़र्फों ने और जब कि
देश का प्रधानमंत्री सरदार है.
कुछ आश्वासन,थोड़ी रकम.विदेशी मुल्कों का रोना.
फिर जैसा का तैसा.
वे भले हैं पढ़े लिखे हैं चाटो चाटो.
लोग बस मे ट्रेन में मंदिर मस्जिद में जाने से घबराते हैं कहीँ आखिरी सफर न हो.
आप दुरस्त फ़र्माते हैं जनाब.
अल्लाह करे जोरे कलम और ज़्यादा.
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